ख़्याले यार में जिस दम तेरी सूरत उतरती है
कोई पगली तुम्हारे नाम से बनती सँवरती है
तुम्हारी याद आते ही लपक कर चूम आती है
तुम्हारे गाँव से जो रेल की पटरी गुज़रती है
कोई पगली तुम्हारे नाम से बनती सँवरती है
तुम्हारी याद आते ही लपक कर चूम आती है
तुम्हारे गाँव से जो रेल की पटरी गुज़रती है
डा.कमला सिंह 'ज़ीनत'
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