एक ग़ज़ल देखें
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ज़ुल्म हो जब भी लड़ जाईये
ख़ौफ़ बन कर उभर जाईये
हौसला है अग र आप में
पार दरिया को कर जाईये
इतनी हिम्मत नहीं हो तो फिर
इससे बेहतर है मर जाईये
दुसरा कोई गुलशन नहीं
यह चमन है निखर जाईये
कल ज़माने को एहसास हो
छोड़ कर कुछ असर जाईये
'ज़ीनत' जी खूबसूरत ग़ज़ल
पढ़ के दिल में उतर जाईये
--कमला सिंह 'ज़ीनत'