Wednesday 18 September 2013

-ग़ज़ल

----------------ग़ज़ल--------------------
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कौन भला याँ रह पायेगा,कौन यहाँ पर रहता है 
सूना सा वीरान ये दिल है,मन पागल भी कहता है 

मेरी यह तकदीर लिखी है,मुश्किल के औरांकों पर 
चीर के मेरे दिल को यारों,दर्द का दरिया बहता है 

मौत नही आती है जब तक,ज़ुल्म ज़माने भर के हैं 
जिस्म में कोई जान नहीं है,फिर भी सब कुछ सहता है 

ताज़महल तामीर किया था,मैंने भी इक ख्वाब तले 
नींद गयी तो फिर नहीं आई,सारा मंज़र ढहता है 

मेरे मालिक सब्र अता कर,ज़ीनत को इस मुश्किल में 
आज मेरा दिल,फिर उस जानिब,जाने क्यों कर बहका है 
---------------------------------------कमला सिंह ज़ीनत 

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