Monday, 16 September 2013

ग़ज़ल

मैं तो इस पार हूँ उस पार है जाना मुझको 
जिंदगी अब मुझे हर बार सताना मुझको 

मौत बरहक़ है या आनी ही तो आने दे इसे
छोड़ दे मौत के झाँसे से डराना मुझको 

रूह की शक्ल में आ जाउंगी मालूम है ये 
कल पतंगों  सा अगर दिल हो,उड़ाना मुझको 

हश्र का वक़्त जो आ जाए तो पल-पल मेरा 
तुम सरे आम ज़माने के दिखाना मुझको 

ए लहद चैन से रह पूरा महल बनने तक 
दफ्न हो जाऊं करीने से तो खाना मुझको 

दिल के खाने में है इक फ़र्ज़ सवाली बनकर 
ए खुदा चैन से बैठूं तो बुलाना मुझको 
---------------------कमला सिंह ज़ीनत  

4 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (19-09-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 121" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

    कृप्या आप कमेन्ट के वर्ड वेरिफिकेशन को हटा दें पाठको को कमेंट्स करने में कठिनाई होती है,यदि किसी प्रकार का सहयोग चाहिए तो सम्पर्क करें।

    ReplyDelete
  2. रूह की शक्ल में आ जाउंगी मालूम है ये
    कल पतंगों सा अगर दिल हो,उड़ाना मुझको ... waah

    ReplyDelete