मैं तो इस पार हूँ उस पार है जाना मुझको
जिंदगी अब मुझे हर बार सताना मुझको
मौत बरहक़ है या आनी ही तो आने दे इसे
छोड़ दे मौत के झाँसे से डराना मुझको
रूह की शक्ल में आ जाउंगी मालूम है ये
कल पतंगों सा अगर दिल हो,उड़ाना मुझको
हश्र का वक़्त जो आ जाए तो पल-पल मेरा
तुम सरे आम ज़माने के दिखाना मुझको
ए लहद चैन से रह पूरा महल बनने तक
दफ्न हो जाऊं करीने से तो खाना मुझको
दिल के खाने में है इक फ़र्ज़ सवाली बनकर
ए खुदा चैन से बैठूं तो बुलाना मुझको
---------------------कमला सिंह ज़ीनत
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (19-09-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 121" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteकृप्या आप कमेन्ट के वर्ड वेरिफिकेशन को हटा दें पाठको को कमेंट्स करने में कठिनाई होती है,यदि किसी प्रकार का सहयोग चाहिए तो सम्पर्क करें।
रूह की शक्ल में आ जाउंगी मालूम है ये
ReplyDeleteकल पतंगों सा अगर दिल हो,उड़ाना मुझको ... waah
bahut bahut aabhar
ReplyDeleteKis bat ka
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