कह गया था ज़ीनत लौटा दूँगा जान तेरी
आज तो धड़कने भी गिरवी हैं पास उसके
----------------------कमला सिंह ज़ीनत
उकेरी थी कई लकीरें ज़ीनत यूँ ही खाली केनवास पर
बाखुदा शक्ल वो उसकी लेता गया
-------------------कमला सिंह ज़ीनत
बेख़ौफ़ करती थी गुफ्तगू परछाईयों से अपने
आज इज़ाज़त लेती हूँ ज़ीनत,अपनी तन्हाईयों से
-------------------------कमला सिंह ज़ीनत
रिमझिम बरसती बूंदों ने महका दिया दामन
खुशियाँ खुद-बखुद चली आयीं ज़ीनत मेरे आँगन
----------------------------कमला सिंह ज़ीनत
वो मेरे ज़ेहन में बेख़ौफ़ फिरा करता है ज़ीनत
रूह को क़ैद किये रहता है दीवाना वो
------------------------कमला सिंह ज़ीनत
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [30.09.2013]
ReplyDeleteचर्चामंच 1399 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteनई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
नई पोस्ट साधू या शैतान
wah........
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