सोचा चलो कुछ लब्ज ही बेच आऊं बाज़ार में
खट्टे मीठे ,अच्छे बुरे सब थे मेरे पास में
खरीदार भी थे लब्जों के अलग-अलग अंदाज में
अलग-अलग बयाँ किये सभी ने,अपने ही प्रकार में
कुछ तो बिके,कुछ फेंके गए वापस मुझ पर इस अद्भुत संसार में ….
चलो 'जीनत' कुछ लब्ज़ ही बेच आऊं बाज़ार में.
-----------------------------------कमला सिंह 'जीनत'
१९। ०७ .१३
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeletenamskar Arun bahut acha laga aapne charcha ke liye rakha hai . mujhe khushi hai .dhanyabaad
ReplyDeleteअच्छी पेशकश!
ReplyDeleteशुक्रिया रूपचन्द्र जी आभार
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