Friday, 19 July 2013

लब्ज

सोचा चलो कुछ लब्ज ही बेच आऊं बाज़ार में 
खट्टे मीठे ,अच्छे बुरे सब थे मेरे पास में 
खरीदार भी थे लब्जों के अलग-अलग अंदाज में 
अलग-अलग बयाँ किये सभी ने,अपने ही प्रकार में
कुछ तो बिके,कुछ फेंके गए वापस मुझ पर इस अद्भुत संसार में …. 
चलो 'जीनत' कुछ लब्ज़ ही बेच आऊं बाज़ार में.  
-----------------------------------कमला सिंह 'जीनत' 
                                    १९। ०७ .१३ 

4 comments:

  1. नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  2. namskar Arun bahut acha laga aapne charcha ke liye rakha hai . mujhe khushi hai .dhanyabaad

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  3. शुक्रिया रूपचन्द्र जी आभार

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