-------ग़ज़ल-----------
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सूना यह आसमान लगता है
अपना खोया मकान लगता है
चाँद की रौशनी भी जुल्मत भी
ये समाँ इम्तेहान लगता है
टूटता है कोई सितारा जब
मेरे दिल पर निशान लगता है
जब भी कहता है दास्ताँ कोई
मेरा अपना बयान लगता है
रंगों - बू का फ़क़त है शैदाई
दिल मेरा बागबान लगता है
ज़ीनत जी मीर,दर्द,ग़ालिब,जौक
खुशनुमा साएबान लगता है
----------------कमला सिंह ज़ीनत
soona yah aasmaan lagta hai
apna khoya makaan lagta hai
chand ki raushni bhi julmat bhi
ye samaan imtehaan lagtaa hai
tuttaa hai koi sitaaraa jab
mere dil par nishaan lagta hai
jab bhi kahta hai dastaan koi
meraa apna bayaan lagta hai
rangon - bu ka fakat hai shaidaayi
dil mera bagbaan lagtaa hai
zeenat ji meer,dard.galib,jauk
khushnumaa sayebaan lagtaa hai
--------------------kamla singh zeenat
बेहतरीन गजल उम्दा पंक्तियां
ReplyDeletethanx Rajendra ji
Deleteजब भी कहता है दास्ताँ कोई
ReplyDeleteमेरा अपना बयान लगता है
...वाह...लाज़वाब ग़ज़ल...सभी अशआर बहुत उम्दा...
behad shukriya aapka
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