Monday, 28 October 2013

-------ग़ज़ल-----------
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सूना यह आसमान लगता है 
अपना खोया मकान लगता है 

चाँद की रौशनी भी जुल्मत भी 
ये  समाँ  इम्तेहान  लगता है 

टूटता  है कोई सितारा जब 
मेरे  दिल पर निशान  लगता है 

जब भी कहता है दास्ताँ कोई 
मेरा अपना बयान लगता है 

रंगों - बू  का  फ़क़त है शैदाई 
दिल मेरा बागबान लगता है 

ज़ीनत जी मीर,दर्द,ग़ालिब,जौक 
खुशनुमा  साएबान लगता है 
----------------कमला सिंह ज़ीनत 

soona yah aasmaan lagta hai 
apna khoya makaan lagta hai 

chand ki raushni bhi julmat bhi 
ye samaan imtehaan lagtaa hai 

tuttaa hai koi sitaaraa jab 
mere dil par nishaan lagta hai 

jab bhi kahta hai dastaan koi 
meraa apna bayaan lagta hai 

rangon - bu ka fakat hai shaidaayi 
dil mera bagbaan lagtaa hai 

zeenat ji meer,dard.galib,jauk
khushnumaa sayebaan lagtaa hai 
--------------------kamla singh zeenat 

4 comments:

  1. बेहतरीन गजल उम्दा पंक्तियां

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  2. जब भी कहता है दास्ताँ कोई
    मेरा अपना बयान लगता है
    ...वाह...लाज़वाब ग़ज़ल...सभी अशआर बहुत उम्दा...

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