------बे ज़बान आहें-----
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देखो ना
देखो
चुन रही हूँ
अपनी पलकों से लहुलहान
तुम्हारी यादों की किरचियाँ
आँखों में भर आये हैं लहू के छींटें
कराह रही हूँ मैं अन्दर ही अन्दर
एक टूटन
एक चटकन के साथ
कराह रही हूँ मैं
कांप रही हूँ मैं
बहार हूँ
नहीं देख सकते
ऊपर की आँखों से ?
अन्दर एक बिखराव है मेरे
तंग है मेरे अंदर की जहां
तू मत जाना कभी अंदर की ओर
घुट जाएगी तेरी सांसे
तड़प उठोगे तुम
मुह भर नहीं खिंच पाओगे साफ़ हवा
तुम उफ़ तुम
काश के समझ पाते
तुम उफ़ तुम
काश के जान पाते
जलन का पता धुएं से लगाते हो तुम
पर
इस जलन से नहीं उठता है धुंआ
आह्ह्ह भी भरुंगी न
वो भी नहीं देख पाओगे तुम
सर्द आहें हैं
खामोश आहें हैं
बे ज़बान आहें हैं
-------------कमला सिंह 'ज़ीनत'
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