Monday, 19 August 2013

जिंदगी एक उलझन

उलझन से भरी जिंदगी क्यों  है  
कुछ मीठी कुछ खरी क्यों है 

जब भी देखो नया तूफ़ान होता है 
बस नाचने में ही शाम होता है 

भागते रहो सुबह से शाम तक 
फिर वहीँ  किस्सा तमाम होता है 

अजीब उलट-फेर है जिंदगी का 
होना वही ढाक के तीन पात होता है 
----------------------कमला सिंह 'ज़ीनत '

No comments:

Post a Comment