--------------ग़ज़ल-----------------------
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एक अरसा हो गया एक नाम से जुड़े
कभी लगता है मुझे है तकदीर से परे
न जाने वो ख्वाब या हकीकत है
हर लम्हा जुड़ा है वो, नसीब से मेरे
परछाईयों की मानिंद चलता है हर वक़्त
महसूस होता है जालों में हूँ उसके घिरे
नाम दर्ज होता है जागीर में जिस तरह
हाथों की लकीरों में शायद लिखा है मेरे
आज हर्फ जिंदगी में नाम उसका देख कर
महसूस करती हूँ, है वो जिंदा ख्यालों में मेरे ……………………
----------------------------- --कमला सिंह 'ज़ीनत'
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