दफना दिया तुझे आज यादों के साथ
बुझा दिया दीपक जलते चिरागों के साथ
कभी इठलाती थी,शरमाती थी जिस नाम से
बहता है दरिया वहां,अश्कों के जाम के साथ
निशां भी अब मौजूद नहीं तेरा कहीं
दबा दिया तुझे बेचैन एहसासों के साथ
गूंजता था तरन्नुम जहाँ जिंदा धडकनों में
सन्नाटा पसरा अब वहां तेरे मातम के साथ
लबों की सुर्खिया देती थी गवाही जिस आह्लाद की
सूख गए हैं वो भी तपती दुपहरी गर्मी के साथ
घुटता है दम, देख ज़र्द पड़े यादों के पत्तों को
दफ़ना दिया तुझे मैंने अतीत के पन्नों के साथ
दफना दिया तुझे मैंने अतीत के पन्नों के साथ
दफना दिया तुझे मैंने अतीत के पन्नों के साथ
-----------------------------कमला सिंह ज़ीनत
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