--------------नज़म -----------
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(ढूंढ लेना मुझे आसान नहीं )
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गुमसुदा हो चुकी हूँ मैं खुद में
मेरी हस्ती तमाम है खुद में
रौशनी मेरी दफ्न है मुझमें
मुझमें बस्ती बसी है लहजे की
मेरे अंदर बहुत है शोर अभी
मेरी एक खोज है मेरे अंदर
मैं ही मैं खुद भटकती रहती हूँ
मुझ में इक रूह प्यासी चलती है
इक तमाशा बनी हूँ खुद में मैं
चोट पे चोट लगते रहते हैं
हर तरफ ज़ख्म की कतारें हैं
मैं मसीहा हूँ अपने ज़ख्मों का
मुझमे उलझन है एक पेचीदा
रास्ता कोई भी नहीं मुझमे
खुद में मजबूर तमाशा हूँ मैं
खुद की बेदर्द तमाशाई हूँ मैं
दो कदम चलने भर की जान नहीं
फ़िक्र की क़ैदी हूँ इंसान नहीं
खुद से बाहर मेरी पहचान नहीं
ढूंढ लाना मुझे आसान नहीं
ढूंढ लाना मुझे आसान नहीं
---कमला सिंह ज़ीनत
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