अल्फ़ाज़ों से बयाँ होती नहीं जो बातें कर जाती हैं आँखे बयाँ
कहूँ क्या या ना कहूँ ज़ीनत उनके दिल कि दास्ताँ
------------------------कमला सिंह ज़ीनत
चलता है हर वक़्त ख्यालों में परछाई कि मानिंद वो ज़ीनत
चाह कर भी रिहाई नहीं मिलती उसके ख्वाबों-ख्यालों से
----------------------------------कमला सिंह ज़ीनत
बयां करता है मुझसे जब हाल-ए -दिल अपना अजी ज़ीनत
किसी और से फुर्सत न हो उसको तो बुरा लगता है
------------------------कमला सिंह ज़ीनत
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