लबों की सुर्ख लाली छीन ली किसी ने
खुश्क होठों पे तबस्सुम कैसा है
---------------कमला सिंह ज़ीनत
हर वक़्त उसकी दबिश गूंजती है कानों में ज़ीनत
जाने वो दबे पाओं क्यों चला जाता है आकर
------------------------------कमला सिंह ज़ीनत
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