वो बहुत लाजबाब है मेरा
सुर्ख ताज़ा गुलाब है मेरा
आँख भर उसको रोज़ जीती हूँ
खुशनुमा एक ख्वाब है मेरा
उसके खुश्बू से हूँ मॉत्तर मैं
महका महका नवाब है मेरा
रात उससे ही जगमगाती है
पुरकशिश माहताब है मेरा
जब बरसती हूँ उसकी यादों में
फुट पड़ता हुबाब है मेरा
रौशनी बस उसी से है ज़ीनत
इक वही आफताब है मेरा
---------कमला सिंह ज़ीनत
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