दर्द का सेहरा पहन घूमता है वो दुल्हा बनकर ज़ीनत
हँसी बयाँ कर जाती है दिल में छुपा दर्द उसका
---------------------------------कमला सिंह ज़ीनत
ढूंढते हैं बसेरा आसमान तले मुफ़्लिसी में ज़ीनत
बेगैरत हो गया है आज इंसान अमीरी में
-----------------------------कमला सिंह ज़ीनत
अपने माज़ी के वास्ते बिछ गयी मैं बिस्तर की तरह
वो चुभाता रहा नश्तर 'शब्दों' के 'ज़ीनत' शूल की तरह
---------------------------कमला सिंह ज़ीनत
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