Sunday, 15 September 2013

चाँद बादल से जब निकलता है 
हर घड़ी साथ -साथ चलता है 

एक नयी सुब्ह रोज़ आती है 
इस तरह दिल मेरा बहलाता है 

शाम होते ही वह जवां सूरज 
मेरे पहलु में रोज़ ढलता है 

हसरतों के चिरागदानों में 
आरज़ुओं का दीप जलता है 

फिक्र के लान पर वो शाहज़ादा 
हाथ बांधे हुए टहलता है 

दिल में हर वक़्त तेरी वो ज़ीनत 
धडकनों सा यूँ ही मचलता है 
------------कमला सिंह ज़ीनत 

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