Tuesday, 30 July 2013

बहार

एक कविता मेरे किताब के पन्नों से 
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गम इसका नहीं की 
तुमने ठुकरा दिया मुझे 
गम इसका भी नहीं की 
धोखा दिया मुझे 
गम तो ये है की 
बेवफा का नाम दिया 

गिला नहीं मुझे तुमसे 
मुझे पल पल तड़पाया क्यों 
गिला तो मुझे खुद से है की 
तुझसे दिल लगाया क्यों ?

उम्मीद नहीं कोई तुझ से 
ना आरजू अब बहारों की 
चलेंगे राहें वफ़ा पर हम अकेले 
ज़रूरत नहीं मुझे अब 
तुम्हारे सहारे की 

मिलेगा क्या कुछ नहीं 
यूँ आंसू बहाने से 
तनहा भी कट जाती है जिंदगी 
गम को गले लगाने से 

मर जायेंगे मिट जायेंगे 
वफ़ा का नाम कर जायेंगे 
अपनी सच्ची खुशबू से
तेरा आशियाना भी महका जायेंगे 
-------------------कमला सिंह जीनत  

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