मुद्दतों बाद वो लम्हा फिर से जी गयी
यादों के कफ़न को फिर से ओढ़ के सो गयी
हर वो बीता पल फिर से जी उठा मेरा
सूखे अश्कों का बादल फिर से लरज उठा मेरा
बरस पड़े झूम के दामन पर मेरे
भीग गया आज फिर वो आँचल मेरा
चाहती नहीं थी यूँ याद आओगे तुम
यूँ आकर फिर से तड़पा जाओगे तुम
क्या करूँ आज लम्हा ही कुछ ऐसा है
तेरी ही हर एक बात से जुड़ा जैसा है
तेरी खुशबू से छन में भर गयी साँसें मेरी
गुलशन भी फिर से महक गया मेरा
बात कुछ भी नहीं बस बीता पल है तू मेरा
जिंदगी से जुदा पर फिर भी इतिहास है मेरा
-----------------------------कमला सिंह जीनत
No comments:
Post a Comment