Tuesday, 30 July 2013

मुद्दतों बाद वो लम्हा फिर से जी गयी 
यादों के कफ़न को फिर से ओढ़ के सो गयी 

हर वो बीता पल फिर से जी उठा मेरा 
सूखे अश्कों का बादल फिर से लरज उठा मेरा

बरस पड़े झूम के दामन पर मेरे 
भीग गया आज फिर वो आँचल मेरा 

चाहती नहीं थी यूँ याद आओगे तुम 
यूँ आकर फिर से तड़पा जाओगे तुम 

क्या करूँ आज लम्हा ही कुछ ऐसा है 
तेरी ही हर एक बात से जुड़ा जैसा है 

तेरी खुशबू से छन में भर गयी साँसें मेरी
गुलशन भी फिर से महक गया मेरा 

बात कुछ भी नहीं बस बीता पल है तू मेरा 
जिंदगी से जुदा पर फिर भी इतिहास है मेरा 
-----------------------------कमला सिंह जीनत  

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