ग़ज़ल सुन ने वाले ग़ज़ल सुन हमारा
इसे फिक्र के आसमां से उतारा
हमारी ग़ज़ल में है खुशबू हमारी
किसी ने न परखा किसी ने संवारा
मेरा लहजा नाज़ुक है फिर भी ए यारों
हर एक शेर पत्थर जिगर पे उभारा
मैं सहरा की तपती हुई रेत पर हूँ
वही रेत दरिया ,वही है नज़ारा
ए ज़ीनत नहीं दम के आवाज़ दूँ मैं
मोसल्सल रहे दम उसे है पुकारा
-------------------कमला सिंह ज़ीनत
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