Wednesday, 25 September 2013

----------ग़ज़ल------------
----------------------------------
हमारा दामन जो भर गया है 
किसी का चेहरा उतर गया है 

मेरी बलन्दी से जलने वाला 
हसद लपेटे ही मर गया है 

जो मेरी कश्ती भंवर में उतरी
तो  पूरा दरिया ठहर गया है 

बताया जिसने की हूँ मुसाफिर 
सुना है मैंने की घर गया है 

अभी तो पूरी ग़ज़ल सुनाती 
वो एक मिसरे से डर गया है 

जो सब्जा सब्जा रहा है ज़ीनत 
वो पत्ता पत्ता उजड़ गया है 
----------------कमला सिंह ज़ीनत 

No comments:

Post a Comment