Monday, 19 August 2013

ग़ज़ल

आज जिक्र में तुम फिर याद आये 
बिन मौसम बादल घिर आये 

चर्चा चलता रहा,फिक्र में घूमते रहे 
टूटा ख्वाब बनके अश्क,दामन पे गिर आये

क्या कहती किसी से,घुटती  रही मैं 
बीते वे लम्हें बार-बार फिर आये

कोसती हूँ उन लम्हों को,या लम्हें मुझको 
घड़ी थी कैसी जब नज़रों से घिर आये

कसूर था ना तेरा ना मेरा,था किस्मत का 
खता थी उन लम्हों की जो फिर आये 
-------------------------------कमला सिंह 'ज़ीनत' 

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