Friday, 2 August 2013

वो मंज़र

वो इंतजार मेरा, वो चुपके से आना तेरा 
छुप के मिलना मेरा,गले से लग जाना तेरा 
वो तडपना मेरा ,वो समझाना तेरा 
वो सिसकना मेरा,वो झिझकना तेरा 
वो मंजर याद आता है वो खंजर याद याद आता है 

करके खून हसरतों का मेरे और विफरना तेरा 
खुद ही गले लगा कर ,खुद ही झिडकना तेरा 
रोते छोड़ कर मुझको ,वो चले जाना तेरा 
पल में आकर बाँहों में भीच लेना और मनाना तेरा 
वो मंज़र याद आता है वो खंजर याद आता है 

क्या कहूँ आज दूर कर खुद को मुझसे चले जाना तेरा 
मुझे तड़पा कर  मुसुकुराना तेरा,हस देना तेरा 
उजाड़ कर दिल की बस्ती,खुद को बसा लेना तेरा 
वो मंजर याद आता है. वो मंजर याद आता है 
-----------------------------------कमला सिंह जीनत 
                                       ०२/०८/१३ 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (04-08-2013) के चर्चा मंच 1327 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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