पास-ए-वफ़ा में मैंने सर अपना झुका दिया
तस्कीन था मुझे,बंदगी में खुदा जो बना दिया
मंजिल न था कोई, न कोई खता किया
जिंदगी-ए-जहां में बस खुद को सज़ा दिया
तन्हाईयों में अक्सर वफ़ा से वफ़ा किया
टूटते ही ख्वाब को बस खुद से जुदा किया
उल्फ़त में जुदाई है किसने सिला दिया
आग में विरह की,खुद को जला दिया
मिलन का अंजाम जुदाई,किसने बना दिया
बरहक़ है जुदा होना,मुकद्दर ने बता दिया
-------------------------------कमला सिंह ज़ीनत
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