Saturday, 27 July 2013

दोस्त

दोस्त उसको कहते हैं 
राज़ दार हो मेरा 
गमगुसार हो मेरा 
शाहकार हो मेरा 
शानदार गुलशन हो 
खुशबूदार चन्दन हो 
शांत शांत उपवन हो 
साथ मेरे रहता हो 
सांस सांस लिपटा हो 
ख्वाब बन के आता हो 
मेरी रूह उसमे हो 
उसकी ज़ात मुझमे हो 
वो मेरा सिकंदर हो 
एक शरिफजादा हो 
चाँद वो मुकम्मल हो 
सूर्य सा दमकता हो 
मौज हो समन्दर हो 
मोम और संग भी हो 
मुस्कुराए भी रोये भी 
साथ साथ खेले भी 
मेरे ज़ख्म का मरहम 
मेरे दर्द का फाहा 
मैं ग़ज़ल सी हो जाऊं 
मुझको गुनगुनाये वो 
हाँ मुझे सताए वो 
हाँ मुझे सजाये वो 
हाँ मुझे हंसाये वो  
रूठे मान जाये वो 
दोस्त उसको कहते हैं 
दोस्त उसको कहते हैं 
----------कमला सिंह 'जीनत'
27/07/13

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