लिख लिख के मिटाने की जगह खुद ही मिटती रही हूँ मैं
हस-हस के जिंदगी से लड़ने की जगह पीटती रही हूँ मैं
वो सच भी था मेरा और ख्वाब भी, जिंदगी के हालात भी
जो भी था वो तकदीर था बीता,बार-बार उससे लिपटती रही हूँ मैं
------------------------------------------------------कमला सिंह 'जीनत'
हस-हस के जिंदगी से लड़ने की जगह पीटती रही हूँ मैं
वो सच भी था मेरा और ख्वाब भी, जिंदगी के हालात भी
जो भी था वो तकदीर था बीता,बार-बार उससे लिपटती रही हूँ मैं
------------------------------------------------------कमला सिंह 'जीनत'
likh-likh ke mitaane ki jagah khud mit-ti rahi hun main
has-has ke zindgi se ladne ki jagah pit-ti rahi hun main
vo sach bhi tha mera aur khwab bhi ,zindgi ke haalat bhi
jo bhi tha vo taqdeer tha beeta ,baar-baar usse liptti rahi hun main
---------------------------------------------------------kamla singh 'zeenat'
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