Wednesday 19 August 2015

एक अमृता और...( भाग-2)
____________________________
आज रात भी एक तूफान उठा था
यादों के समुन्दर में
ज़ोरदार हलचल मची हुई थी
गीला गीला पड़ा था
सारा का सारा मंज़र
सर से पांव तक नमी ही नमी पसरी थी
और बिखरा पड़ा था वजूद
सब कुछ अलसाया, बेजान
पल पल यादों की कतरनें बटोरती मैं
लहूलहान थी रात भर
ख़्वाबों वाली अलमारी खुली पड़ी थी
समुन्दर की बेलगाम लहरें
बहा ले गईं सब कुछ
मेरे हिस्से की वो हर रात गवाह है
लो देखो मेरी मुट्ठी में क्या है
यह ख़राशें
कुछ कतरनों को बचाने की ललक में उभरी हैं
ज़रा सूरज को बुलाते आना
तुम भी साथ ही आना
इश्क़ की अलगनी पर टांग दिया है मैंने
बची बचाई यादों की कतरनें
यह ख़ज़ाना तुम्हारा है
यह दौलत तुम्हारी है।
कमला सिंह 'ज़ीनत'

No comments:

Post a Comment