Wednesday 31 July 2013

वक़्त और जिंदगी

वक़्त ने पूछा जिंदगी से तू रोती क्यों है 
जिंदगी ने कहा तू दुःख देता क्यों है 

आती हूँ ख़ुशी में इठलाती तुझ तक 
तू मुझसे पल में छीन लेता क्यों है

इंसान हूँ भगवान् नहीं,शीशा हूँ पत्थर नहीं 
सब कुछ देकर छन में लेता क्यों है 

कहा हसकर वक़्त ने तू इंसान है मानता हूँ मैं 
हर चीज़ का एक समय है ये जानताहूँ मैं  


सब कुछ छंन्भंगुर है लुट जायेगा एक दिन 
आनी जानी हैं चीजें तू शोक मनाता क्यों है  
----------------------------------कमला सिंह जीनत 
                                          ०१/०८/१३ 

तमन्ना ए जिंदगी

मौत अभी रुक जा,जरा गले मिलने तो दे 
कुछ पल ही सही मुझे जिंदगी जीने तो दे 
तेरे दर से रुखसत हो कर जाऊगी कहाँ 
मंजिल है तू ,जिंदगी है तू,जरा दम भरने तो दे 

वक़्त तूने दिया नहीं सोचने और समझने का 
जिंदगी का भरम जरा मिटने तो दे 
सच है ये झूठ नहीं,तू हकीकत है ख्वाब नहीं 
जरा जिंदगी का लुत्फ उठाने तो दे 

समां जाउंगी ख़ुशी से आकर आगोश में तेरे  
महबूब से मुझे जरा लिपट कर रोने तो दे
मुख़्तसर है तेरे पास आना मेरा पल में 
जिंदगी को जिंदगी से रूबरू होने तो दे 
------------------------------कमला सिंह जीनत  
                                01/08/13

Tuesday 30 July 2013

आज जिक्र इश्क का जब से हुआ है 
ये दिल भी मेरा उनका हुआ है 

गाहे-बगाहे चर्चा होता है उनका 
यादों में दिल भी फिर से है खोता

समझाऊ किस तरह से खुद को  
अब वो प्यार नहीं है मुझसे उनको

क्यों भटकता है मन आज भी अतीत में 
नहीं कुछ भी बचा,ख्वाब भी उनके करीब में 

चल रे मन कही और चले जिंदगी से दूर 
आये न जहां कोई भी होके  दिल से मजबूर।
--------------------------------कमला सिंह जीनत 
                                   31/07/13
तुम क्या हो मेरे लिए 
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मेरी चाहत हो तुम 
मेरी किस्मत हो तुम 
मेरा सपना हो तुम 
मेरा अरमां हो तुम 
मेरी इबादत हो तुम 
मेरी तमन्ना हो तुम 
मेरी ज़मीं हो तुम 
मेरा आसमां हो तुम 
मेरा सवाल भी तुम 
मेरा जबाब भी तुम 
मेरी बंदगी भी तुम 
मेरी जिंदगी भी तुम 
मेरे एहसास भी तुम 
मेरे जूनून भी तुम 
मेरी आरजू भी तुम 
मेरी जुस्तजू भी तुम 
मेरा इश्क भी तुम 
मेरा खुदा भी तुम 
बस तुम ही तुम 
बस तुम ही तुम
 बस तुम ही तुम 
---------------कमला सिंह'जीनत'
मुद्दतों बाद वो लम्हा फिर से जी गयी 
यादों के कफ़न को फिर से ओढ़ के सो गयी 

हर वो बीता पल फिर से जी उठा मेरा 
सूखे अश्कों का बादल फिर से लरज उठा मेरा

बरस पड़े झूम के दामन पर मेरे 
भीग गया आज फिर वो आँचल मेरा 

चाहती नहीं थी यूँ याद आओगे तुम 
यूँ आकर फिर से तड़पा जाओगे तुम 

क्या करूँ आज लम्हा ही कुछ ऐसा है 
तेरी ही हर एक बात से जुड़ा जैसा है 

तेरी खुशबू से छन में भर गयी साँसें मेरी
गुलशन भी फिर से महक गया मेरा 

बात कुछ भी नहीं बस बीता पल है तू मेरा 
जिंदगी से जुदा पर फिर भी इतिहास है मेरा 
-----------------------------कमला सिंह जीनत  

बहार

एक कविता मेरे किताब के पन्नों से 
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गम इसका नहीं की 
तुमने ठुकरा दिया मुझे 
गम इसका भी नहीं की 
धोखा दिया मुझे 
गम तो ये है की 
बेवफा का नाम दिया 

गिला नहीं मुझे तुमसे 
मुझे पल पल तड़पाया क्यों 
गिला तो मुझे खुद से है की 
तुझसे दिल लगाया क्यों ?

उम्मीद नहीं कोई तुझ से 
ना आरजू अब बहारों की 
चलेंगे राहें वफ़ा पर हम अकेले 
ज़रूरत नहीं मुझे अब 
तुम्हारे सहारे की 

मिलेगा क्या कुछ नहीं 
यूँ आंसू बहाने से 
तनहा भी कट जाती है जिंदगी 
गम को गले लगाने से 

मर जायेंगे मिट जायेंगे 
वफ़ा का नाम कर जायेंगे 
अपनी सच्ची खुशबू से
तेरा आशियाना भी महका जायेंगे 
-------------------कमला सिंह जीनत  

मोल

चंद सिक्कों के लिए 
आज बिकती है दुनिया 
एक नज़र प्यार के लिए 
हम बिके तो क्या हुआ

जमाना ही फरेब का है 
किसी की लाशों को 
ख़रीदे या बेचे तो क्या हुआ 

तोल -मोल के बिकती है
हर चीज़ आज ज़माने में 
हमने जमीर बेचा तो क्या हुआ 
लोग तो इंसान बेच देते हैं 
अमीरी में ,
हमने दिल का सौदा किया 
गरीबी में तो क्या हुआ। … 
----------------कमला सिंह जीनत   
मौत जिसकी आ जाये ऐसे बुत पे क्या मरना
उसपे मर मिटो ए दिल जो कभी न मरता हो
------------------------कमला सिंह जीनत
maut jiski aa jaaye aise butt pe kya marna uspe mar mito aye dil jo kabhi na marta ho
-----------------------kamla singh zeenat
30/07/13
जीनत तुम्हारे प्यार में पुतले झुके हैं खूब 
रब के लिए तड़पना तेरा लाजवाब है 
---------------------कमला सिंह जीनत 
zeenat tumhare pyaar mein putle jhuke hain khoob
 rab ke liye tadapna tera laajwaab hai
                               कमला सिंह जीनत ३०/०७१३ 
दुनिया फ़क़त एक सुन्दर खिलौना है ए जीनत 
जब तक ये सांस बोले चलो खेलती रहो.
-------------------------कमला सिंह जीनत 
 
-duniya faqat ek sundar khilona hai aye zeenat 
jab tak ye saans bole chalo khelti raho-
--------------------------------- kamla singh zeenat 
                                 30/07/13
रब ने दिया है हुस्न तो जलवा है ये मेरा 
निकला मुझे है आज भी सूरज तलाश ने 
------------------------------कमला सिंह जीनत 
rab ne diya hai husn to jalwa hai ye mera nikla mujhe hai aaj bhi suraj talaash ne
-----------------------------कमला सिंह जीनत
३०/०७/१३
ये जिस्म क्या है मिट्टी है,इसका भरोसा क्या 
जो रूह मेरे साथ है उसके करीब आ … 
--------------------------कमला सिंह जीनत 
ye jism kya hai mitti hai iska bharosa kya 
jo ruuhh mere saath hai uske qareeb aa
----------------------kamla singh zeenat

Monday 29 July 2013

ए शायरी, इस दौर की जीनत हूँ मैं तेरी 
लिखती हूँ जब भी शेर तो, होती हूँ बावली 
--------------------------------कमला सिंह जीनत 
aye shaayeri is daur ki zeenat hun main teri likhti hun jab bhi sher to, hoti hun baawlii.
--------------------------------kamla singh zeenat.
२९/०७/१३
ए जिंदगी तमाशा ना कर,मेरी कद्र कर 
जब तक हूँ मैं जहांन  में जीनत हूँ तेरी। 
-------------------------------कमला सिंह जीनत  
aye zindagi tamasha na kar,meri qadr kar jab tak hun main jahaan mein, zeenat hun main teri
----------------------------------kamla singh zeenat.-
29/07/13
हर दर्द की दवा होती है


जो तुम समझे वो झूठी है


घर में बनता नहीं ये कभी


ये कुदरत की दी हुई होती है
----------------zeenat
29/07/13
आँखों ही आँखों में बयां हुई बातें,देखते ही देखते चार हुई आँखें
उलझती ही गयी बातें ही बातें ,देखती रह गयी आँखें ही आँखें
-------------------------------------------------कमला सिंह जीनत

जिन्दगी

जिंदगी जी रही हूँ ऐसे मैं 
जैसे पानी का बुलबुला हो कोई 
जैसे कश्ती हो बीच धारे में 
जैसे गुलशन हो और बंजर हो 
जैसे बुलबुल हो और गा न सके 
जैसे मन्नत  हो,कबूल ना हो
जैसे हो फूल और खुशबू ना हो  
जैसे दरिया हो और प्यासा हो 
जैसे तितली हो और उड़ ना सके 
जैसे बादल हो और बरस ना सके 
जैसे लश्कर हो और लड़ ना सके 
जैसे दरया हो और ठहरा हो 
जैसे किस्मत हो और फूटी हो 
जैसे दीवार हो और टूटी हो 
बेबसी है फ़क़त खुमारी है 
हर तरफ सिर्फ दुनियादारी है 
हर घड़ी एक बेक़रारी है 
इस तरह जिंदगी हमारी है 
इस तरह जिंदगी हमारी है 
-----------------कमला सिंह 'जीनत'
..................................... zindagi ji rahi hun aise main jaise paani ka bulbulaa ho koi jaise kashti ho beech dhaare mein jaise gulshan ho aur banjar ho jaise bulbul ho aur gaa na sake jaise koi mannat qobuul na ho
jaise ho phul aur khushboo naa ho jaise darya ho auho r pyasa ho jaise titli ho aur ud na sake jaise baadal ho aur baras na sake jaise lashkar ho aur lad na sake jaise darya ho aur thara ho jaise qismat ho aur phuuti ho jaise deewaar ho aur tuuti ho bebasi hai faqat khuumaari hai har taraff sirf duniyaadaari hai har ghadi aik beqaraari hai is trah zindagi hamari hai is trah zindagi hamari hai. kamla singh zeenat.
दरख्तों पे पड़े फूल भी मुरझा गए 'जीनत'
किस मौसम की बात करे हो,जो मौसम ना आयो रे 
-------------------------------------कमला सिंह 'जीनत 
darkhton pe pade phool bhi  murjha gaye zeenat
kis mausam ki baat kare ho,jo mausam naa aayo re  
--------------------------------------kamla singh zeenat 
                                         29/07/13 
दबी चिंगारियों को फिर से सुलगा दिया कोई 
बेचैनी दिल की फिर से बढ़ा दिया कोई 
समझता नहीं क्या होगा अंजाम उसका 'जीनत'
जिंदगी को फिर से उलझनों में उलझा दिया कोई 
----------------------------- कमला सिंह 'जीनत'  
dabi chingariyon ko phir se sulga diya koi 
bachaini dil ki phir se badhha diya koi 
samjhta nahi kya hoga anjaam uska 'zeenat'
zindgi ko phir se uljhaa men diya koi 
------------------------------kamla singh 'zeenat'
                                29/07/13

Sunday 28 July 2013

मैं

 मेरे जिस्म के अन्दर
 एक मैं की जीनत है
 एक मैं की कमला है 
एक मैं की औरत है
 मैं से मैं परीशाँ हूँ
मैं से मैं हूँ शर्मिंदा,
सर उठाये रहती है, 
बात ही नहीं सुनती 
आग आग रहती है,
होश में नहीं जीती,
मुझ से ही झगड़ती है,
मुझको ताने देती है,
नकचढ़ी बहुत है वो ,
वो बद मिज़ाज पागल है,
मिन्नतें नहीं उसमे,
आरज़ू नहीं कोई,
जुस्तजू नहीं कोई लब पे,
सिर्फ़ वो तेज़ाबत है, 
आह की समुन्दर है
ज़ख्म का पिटारा है 
दुःख का एक मेला है
मैं से मैं परीशाँ हूँ 
कुछ दुआ करो यारो
मेरे ज़िंदा रहने का
रास्ता बताओ न
मुझको फिर हंसाओ न 
गीत गुनगुनाओ न
दोस्त सारे आओ न
मैं से मैं परीशाँ हूँ
मैं से मैं परीशाँ हूँ
------कमला सिंह जीनत -


परिंदों के टूटे पंखों की लाचारी तो देखिये 
इंसानों में पंख काटने की बीमारी तो देखिये 
उड़ना चाहें भी आजादी की उड़ान आसमां में तो
परिंदों को मार डालने की व्यभिचारी तो देखिये।
---------------------------कमला सिंह 'जीनत'

parindon ke tute pankhon ki lachari tho dekhiye
insaanon me pankh katne ki bimari tho dekhiye
udna chahen bhi aazadi ki udaan aasmaan me tho
parindon ko maar dalne ki vyabhichari tho dekhiye
-----------------------------------kamla singh 'zeenat'
हमें प्यारी सी जिंदगी मिली आपसे 
ईमान-धर्म की दौलत भी मिली आपसे 
हमारा गुलिश्तां सरोबार रहे खुशियों से 
मेरे गुलशन की हर फूल,हर कली खिली आपसे।
----------------------------कमला सिंह 'जीनत'   
hume pyari si zindgi mili aapse 
imaan-dharm ki daulat bhi mili aapse 
humara gulishtan sarobaar rahe khushiyon se 
mere gulshan ki har phool,har kali, khili aapse 
-----------------------------------kamla singh 'zeenat'

Saturday 27 July 2013

तमाम उम्र गुजार दी 'जीनत' ने इंतज़ार में तेरे 
हासिल हुआ क्या? पत्थर की हो गयी आँखें मेरी। 
-------------------------------------कमला सिंह 'जीनत'

27/07/13

दोस्त

दोस्त उसको कहते हैं 
राज़ दार हो मेरा 
गमगुसार हो मेरा 
शाहकार हो मेरा 
शानदार गुलशन हो 
खुशबूदार चन्दन हो 
शांत शांत उपवन हो 
साथ मेरे रहता हो 
सांस सांस लिपटा हो 
ख्वाब बन के आता हो 
मेरी रूह उसमे हो 
उसकी ज़ात मुझमे हो 
वो मेरा सिकंदर हो 
एक शरिफजादा हो 
चाँद वो मुकम्मल हो 
सूर्य सा दमकता हो 
मौज हो समन्दर हो 
मोम और संग भी हो 
मुस्कुराए भी रोये भी 
साथ साथ खेले भी 
मेरे ज़ख्म का मरहम 
मेरे दर्द का फाहा 
मैं ग़ज़ल सी हो जाऊं 
मुझको गुनगुनाये वो 
हाँ मुझे सताए वो 
हाँ मुझे सजाये वो 
हाँ मुझे हंसाये वो  
रूठे मान जाये वो 
दोस्त उसको कहते हैं 
दोस्त उसको कहते हैं 
----------कमला सिंह 'जीनत'
27/07/13

ग़ज़ल

ए ग़ज़ल बैठ मेरे सामने तू 
मैं सवारुंगी तुझे 
मैं निहारूंगी तुझे 
मैं उभारुंगी तुझे 
ए ग़ज़ल मेरी ग़ज़ल 
ए मेरी शान ए ग़ज़ल 
ए मेरी रूह ए ग़ज़ल 
ए मेरी फिक्र ए ग़ज़ल 
ए मेरी जान ए ग़ज़ल 
ए मेरी जश्न ए ग़ज़ल
ए मेरी सुभ ए ग़ज़ल 
ए मेरी सोज़ ए ग़ज़ल 
ए मेरी साज़ ए ग़ज़ल 
तेरे बिन चैन कहाँ 
तेरे बिन जाऊं कहाँ 
तू मेरी दिल की सुकून 
तू ही धड़कन है मेरी 
तू ही साँसों में बसी 
तू ही एहसास मेरी 
तू ही ज़ज्बात मेरी 
तू ही आगाज़ मेरी 
तू ही अंजाम मेरी 
ए मेरी शान ए ग़ज़ल 
ए मेरी जान ए ग़ज़ल 
आ मेरे सामने बैठ 
मैं सवारुंगी तुझे 
मैं सवारुंगी तुझे  
------------कमला सिंह 'जीनत' 
२७/०७/१३ 

Friday 26 July 2013

शबे - फुर्सत में अक्सर तन्हाईयाँ नसीब होती हैं 
फिर सोचता है दिल 'जीनत' कौन मेरे करीब होता हैं. 
-------------------------------------------कमला सिंह 'जीनत' 
shabe-fursat me aksar tanhayiyaan naseeb hoti hain 
fir sochta hai dil 'zeenat' kaun mere kareeb hota hain 
-----------------------------------------------kamla singh 'zeenat'
मुझे जिंदगी चाहिए थी और उसे बंदगी 'जीनत' 
उसने बंदगी ले ली और मैंने सादगी उसकी।
……………………… …… कमला सिंह 'जीनत'
                                      २६/०७/१३  

नज़्म

तू कहाँ है जिंदगी 
तुझको ढुंढती हूँ मैं 
तुझको मांगती हूँ मैं 
तुझको चाहती हूँ मैं 
तुझसे रूठती हूँ मैं 
तुझसे बोलती हूँ मैं 
तुझसे भागती हूँ मैं 
तुझको मांगती हूँ मैं 
तुझको जानती हूँ 
तू नहीं तो मैं क्या हूँ मैं 
मैं नहीं तो तू क्या है 
तेरे होने से सब है 
मेरे होने से तू है 
तेरा नाज मुझसे है 
मेरा  नाज़ है तुझसे 
मैं तेरी मुहब्बत हूँ 
मैं तेरी शरारत हूँ 
मैं  तेरी इबादत हूँ 
मुझसे तेरा चेहरा है 
तू नहीं तो गुलशन क्या 
मैं नहीं तो मालन क्या 
जिंदगी मेरी जानम 
तुझसे प्यार है मुझको 
तू ही प्यार है मेरी 
तू ही यार है मेरी  
तू  कहा है बोलो न 
तू कहाँ है जिंदगी  
तुझको ढूढती हूँ मैं 
---कमला सिंह 'जीनत'

Thursday 25 July 2013

कहा कब तुझसे ए साहिब ? 
कि तुझसे प्यार करती हूँ …? 
अजी दो बोल मीठे …….  .? 
अजी कुछ शब्द अच्छे … . ?
अजी मुस्कान मेरी ……… ?
अजी कुछ वक़्त मेरा …..  .?  
अजी आदाब करना …….  .? 
अजी लाफ्ज़ी मरासिम ….. ?  
अजी लाफ्ज़ी तबस्सुम ….. ? 
अजी लाफ्ज़ी  रकाबत …. . ? 
अजी लाफ्ज़ी मुहब्बत  …  ? 
अजी तेरी ये हिम्मत …… ?
अजी तू प्यार मांगे ……..  ?
अजी तू कुर्ब चाहे ……….. ? 
अजी तू मेहर पाए ……….? 
अजी तू कौन मेरा ………. ? 
अजी यह कैसा रिश्ता …….? 
अजी ये क्या हिमाकत ……?  
अजी ये क्यूँकर खुशामद  …? 
क़यामत ही क़यामत ……. ?
क़यामत ही क़यामत ………?
कहा कब तुझसे ऐ साहिब ….?  
कि तुझसे प्यार करती हूँ  … ? 
------ -कमला सिंह 'जीनत' 

Wednesday 24 July 2013

गिरह बंद  कता
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मैं अकेली हूँ सवा लाख ये लश्कर ही सही 
तकदीर के हिसाब से ये नस्तर ही सही 
रजा  उसकी हो तो बेख़ौफ़ बजा लायेंगे 
मेरी राहों में नहीं फूल तो 'जीनत' पत्थर ही सही 
------------------------कमला सिंह 'जीनत' 
main akeli hun sawa laakh ye lashkar hi sahi
 meri taqdeer ke hisse main ye nashtar hi sahi
 hai raza uski to bekhauf baja laayenge 
meri raahon men nahin phool to patthar hi sahi..
-------------------------------कमला सिंह 'जीनत'
प्यार बिकता नहीं बाज़ार में  
न ख़रीदा जाता है इश्तेहार में 
ये तो दिल की दौलत है दोस्तों
सौदा होता है प्यार का सिर्फ प्यार में।
----------------------------कमला सिंह 'जीनत' 
 

दिल की ज़मी

दिल की ज़मी पे 
अश्कों के बारिश में
भींगती रही सारी रात मैं 
कुछ कम्पन ,कुछ थकन भी
सिहरती रही सारी रात मैं 
बेचैन भी हूँ और 
बेतकल्लुस भी हूँ 
मूक सी बनी   
घुटती रही सारी रात मैं
पल-पल गुजरा 
सदियों सा पर 
यादों में छुपती रही 
सारी रात मैं 
निष्ठुर भी है और शायद
निर्दयी भी वो 
जिसकी खातिर 
जलती रही सारी रात मैं 
शमशान बन गया 
वो मंजर छन में ही 
जिसकी खातिर'जीनत' 
मिटती रही सारी रात मैं 
-------------------कमला सिंह 'जीनत' 
dil ki zami pe 
ashqon ki barish me 
bhigti rahi sari raat main 
pal-pal gujra 
sadiyon sa par 
yadon me chupti rahi 
sarii raat main 
nisthur bhi hai aur shayad
nirdyi bhi vo 
jiski khatir 
jalti rahi sari raat main 
shamshaan ban gaya 
chhan me vo manjar zeenat
mitti rahi jiski 
khatir sari raat main 
-------------------kamla singh ;zeenat'
जरुर किस्सा तेरा मुझसे कहीं जुड़ा होगा 
लेकिन तू किसी और के दिल में भी बसा होगा 
सबूत क्या लुंगी मैं तेरे इश्के -जूनून का 
तू भी तो रोज़ मेरे किस्से सुनता होगा।
----------------------------------------कमला सिंह 'जीनत' 
jarur kissa tera mujhse kahi juda hoga
lekin tu kisi aur ke dil me bhi basta hoga 
saboot kya lungi tere ishq-junun ka 
tu bhi tho roz mere kisse sunta hoga 
-----------------------------------kamla singh 'zeenat'
                                  २४ /०७/१३ 

Tuesday 23 July 2013

प्यार-प्यार कहते हैं सभी,'जीनत' करता नहीं कोई 
कहते हैं मर जायेंगे पर मरता नहीं कोई 
ये तो आदत है दिलफेंक आशिकों का वाकया
जिंदगी के असूलों में खरा उतरता नहीं कोई. . . 
--------------------------------------------कमला सिंह 'जीनत'
pya-pyar kehte hain sabhi 'zeenat'karta nahi koi 
kehte hain mar jayenge par marta nahi koi 
ye tho aadat hai dilfenk aashikon ka vakyaa
zindgi ke asulon me kharaa utrataa nahi koi 
---------------------------------------------------kamla singh 'zeenat'
                                                        23/07/13 

Monday 22 July 2013

धडकनों की सुन लेती हूँ 
धडकनों से कह लेती हूँ 
किस-किस से कहूँ अपनी 
सब कुछ दिल में छुपा लेती हूँ 
-------------------कमला सिंह'जीनत'
dhadkno ki sun leti hun 
dhadkno se keh leti hun 
kis-kis se kahun apni 
sab kuch dil me chupa leti hun 

लिख लिख के मिटाने की जगह खुद ही मिटती रही हूँ मैं 
हस-हस के जिंदगी से लड़ने की जगह पीटती रही हूँ मैं 
वो सच भी था मेरा और ख्वाब भी, जिंदगी के हालात भी 
जो भी था वो तकदीर था बीता,बार-बार उससे लिपटती रही हूँ मैं
------------------------------------------------------कमला सिंह 'जीनत'
likh-likh ke mitaane ki jagah khud mit-ti rahi hun main
has-has ke zindgi se ladne ki jagah pit-ti rahi hun main 
vo sach bhi tha mera aur khwab bhi ,zindgi ke haalat bhi 
jo bhi tha vo taqdeer tha beeta ,baar-baar usse liptti rahi hun main 
---------------------------------------------------------kamla singh 'zeenat'

Sunday 21 July 2013

बिकता है हर चीज़ आज जमाने में 
आशियाना भी बिक जाता है जुआखाने में 
कीमत नहीं आज इंसान के जीवन का भी 
बिकता है आज खून भी मयखाने में. 
------------------------------कमला सिंह 'जीनत'

bikta hai aaj har cheez jamane me 
aashiyana bhi bik jata hai juakhane me 
kimat nahi aaj insaan ke jivan ki 
bikta hai aaj khun bhi may khane me 
---------------------------------------kamla singh 'zeenat'
अब तो ये बातें आम हुई 
मैं तेरी बातों की गुलाम हुई 
रफ़्तार बदल गयी जिंदगी की 
ये खता मुझसे आज सरे आम हुई 
------------------------कमला सिंह 'जीनत'
ढूँढती हूँ बीते ज़माने को 
गुजरे हुए अफ़साने को 
सुकून था जिसमे शामों-सहर 
नायाब जिंदगी के कारनामों को।
--------------------कमला सिंह 'जीनत'
dhundti hun beete zamane ko 
gujre hue afsaane ko 
sukun tha jisme shamon-sahar 
nayab zindgi ke karnamon ko 
------------------kamla singh'zeenat' 

लिख लिख के मिटाने की जगह खुद ही मिटती रही हूँ मैं 
हस-हस के जिंदगी से लड़ने की जगह लिपटती रही हूँ मैं 
वो सच भी था मेरा और ख्वाब भी, जिंदगी के हालात भी 
जो भी था वो तकदीर था बीता,बार-बार उससे पिटती रही हूँ मैं
------------------------------------------------------कमला सिंह 'जीनत'